Thursday, October 31, 2013

दिल्ली में भोजपुरी नाट्य महोत्सव - एक सुखद अनुभव

बहुत दिनो के बाद कोई नाटक देखा। थियेटर के दिन याद आ गए। एक समय था जब रोज़ शाम कालिदास रंगालय, पटना में नाटकों का रिहर्सल करता था। नाट्य महोत्सवों और नाट्य प्रस्तुतियों में दिन रात कैसे गुजर जाते थे, पता हीं नहीं चलता था। बात सन 1996-98 की है जब मै बिहार नाट्यकला प्रशिक्षणालय, बिहार आर्ट थियेटर, कालिदास रंगालय में नाटक का विद्यार्थी हुआ करता था। तब मैंने भोजपुरी के कई आधुनिक नाटकों को रंचमंच से जोड़ा ....सुरेश कांटक लिखित हाथी के दांत, सरग-नरक, भाई के धन, नरेंद्र रस्तोगी मसरक लिखित मास्टर गनेसी राम .... सूर्यदेव पाठक पराग लिखित जंजीर , आचार्य पाण्डेय कपिल लिखित फूलसूंघी (नाट्य रूपांतर - मनोज भावुक ), मनोज भावुक लिखित कलाकार और महेंद्र प्रसाद सिंह लिखित बिरजू के बियाह की कई प्रस्तुतियां हुईं। भोजपुरी नाटकों को लेकर आगे बढ़ना मेरा एक सपना था। नाटको पर मैंने शोध का काम भी किया और '' भोजपुरी नाटकों की दुनिया'' नाम से आजादी के पहले और आजादी के बाद के नाटकों पर आलेख लिखा जिसका प्रकाशन भोजपुरी अकादमी पत्रिका, भोजपुरी सम्मेलन पत्रिका और विभोर में हुआ। बाद में रोज़ी - रोटी के चक्कर में इंजीनियरिंग क्षेत्र में जाने और विदेश प्रवास की वजह से यह क्रम भंग हो गया .... पर भोजपुरी नाटकों के प्रति मोह भंग नहीं हुआ। 


कल महेंद्र प्रसाद सिंह लिखित- निर्देशित भोजपुरी नाटक ''लुटकी बाबा के रामलीला'' देखा। भोजपुरी में इतनी मौलिक प्रस्तुति दुर्लभ है। मंच और नेपथ्य दोनों की रामलीला देखी। क्या खूब लेखक की परिकल्पना है। तमाम तरह की विसंगति और दुखो से बाहर निकलकर अपने आप को किसी किरदार में फिट करना कितना कठिन है। स्वत: और अनायास हास्य पैदा होता है और जो भी सन्देश है वह हास्य के भीतर से अपने आप फूटता है। नाटककार ने कुछ भी थोपा नहीं है। कलाकारों का चयन भी सटीक है। सभी अपनी भूमिका में फिट हैं और सबने अपना बेस्ट दिया है। अंत में लुटकी बाबा बना लेखक -निर्देशक जब बड़े हीं भोलेपन के साथ यह सवालिया निशान छोड़ जाता है कि रावण अभी मरल नइखे तो दिल्ली अपने गिरेबान में झांकने लगती है।

एल टी जी ऑडिटोरियम, मण्डी हाउस, दिल्ली में आयोजित इस नाटक को देखने के बाद मुझे सचमुच अपने थियेटर के दिनों की याद आने लगी। उन्हीं दिनों नाटककार महेंद्र प्रसाद सिंह से लेखकीय परिचय हुआ, फिर घरेलू ..फिर आत्मिक। अफ्रिका और इंग्लैड प्रवास के दौरान भी हम दोनों जुड़े रहे। विभोर में लिखता रहा। ....पर आज इनका पूरा नाटक पहली बार देखा।
दिल्ली में भोजपुरी नाट्य महोत्सव करना एक ऐतिहासिक उपलब्धि है और इसके लिए रंगश्री की पूरी टीम को बधाई।
बाकी के 4 नाटक नहीं देख पाया ..इसका अफसोस। मेरे मित्र प्रवीण सिंह (प्रोड्यूसर, अंजन टीवी) भी मुझे उलाहना दे रहे हैं कि आपने पहले क्यों नहीं बताया। हम पाँचों नाटक देखते। ऐसा अद्भुत आयोजन देखने को मिलता कहाँ है .

और हाँ ....भोजपुरी नाटकों का जितना मेरा अध्ययन है, जितना मुझे ज्ञान है, उसके आधार पर यह कह सकता हूँ कि '' समकालीन भोजपुरी नाटक में श्री महेंद्र प्रसाद सिंह एक ऐसा नाम हैं जिनकी कदकाठी, भोजपुरी ही नहीं, हिन्दी के किसी बड़े नाटककार के समानान्तर देखी जा सकती है. इनके नाटकों में नाटक का परम्परागत कथ्य और आधुनिकता से लैस समकालीन एवं समसामयिक बोध विस्तार सूक्ष्मता से सुगुम्फित मिलते हैं. इसलिये मेरा मानना है कि ये प्रयोगधर्मी सृजनशील नाटककार आधुनिक भोजपुरी नाटक के प्रथम पुरुष हैं, जिनकी रंगमंच और भोजपुरी नाटकों के प्रति प्रतिबद्धता और जिनका क्रमश: विकास रंगश्री की तमाम प्रस्तुतियों में देखा-परखा जा सकता है. भोजपुरी नाटक के इस योद्धा को मेरा प्रणाम! ''




Photos clicked by - Devkant Pandey (छाया - देवकांत पाण्डेय )
 — at LTG Auditorium.

Poet Manoj Bhawuk with Dr. Bhishma Narain Singh, former Governor of the states of Assam and Tamilnadu
दीप प्रज्वलन करते पूर्व राज्यपाल डा. भीष्म नारायण सिंह , मैथिली-भोजपुरी अकादमी के उपाध्यक्ष अजित दूबे, ब्रजेन्द्र त्रिपाठी, सम्पादक, साहित्य अकादमी, वीर कुंवर सिंह फाउंडेशन के अध्यक्ष निर्मल सिंह, लेखक-निर्देशक महेंद्र प्रसाद सिंह एवं कवि मनोज भावुक

Poet Manoj Bhawuk with Dr. Bhishma Narain Singh, former Governor of the states of Assam and Tamilnadu
दीप प्रज्वलन करते मैथिली-भोजपुरी अकादमी के उपाध्यक्ष अजित दूबे, पूर्व राज्यपाल डा. भीष्म नारायण सिंह , ब्रजेन्द्र त्रिपाठी, सम्पादक, साहित्य अकादमी, वीर कुंवर सिंह फाउंडेशन के अध्यक्ष निर्मल सिंह, लेखक-निर्देशक महेंद्र प्रसाद सिंह एवं कवि मनोज भावुक 

Poet Manoj Bhawuk with Dr. Bhishma Narain Singh, former Governor of the states of Assam and Tamilnadu
दीप प्रज्वलन करते वीर कुंवर सिंह फाउंडेशन के अध्यक्ष निर्मल सिंह, मैथिली-भोजपुरी अकादमी के उपाध्यक्ष अजित दूबे, पूर्व राज्यपाल डा. भीष्म नारायण सिंह , ब्रजेन्द्र त्रिपाठी, सम्पादक, साहित्य अकादमी, लेखक-निर्देशक महेंद्र प्रसाद सिंह एवं कवि मनोज भावुक 

Poet Manoj Bhawuk with Dr. Bhishma Narain Singh, former Governor of the states of Assam and Tamilnadu
दीप प्रज्वलन करते मनोज भावुक, वीर कुंवर सिंह फाउंडेशन के अध्यक्ष निर्मल सिंह, मैथिली-भोजपुरी अकादमी के उपाध्यक्ष अजित दूबे, पूर्व राज्यपाल डा. भीष्म नारायण सिंह , ब्रजेन्द्र त्रिपाठी, सम्पादक, साहित्य अकादमी, लेखक-निर्देशक महेंद्र प्रसाद सिंह

Wednesday, October 30, 2013

मनोज भावुक की कविवर सत्यनारायण जी से मुलाक़ात

लगभग 15 वर्षों के बाद कवि सत्यनारायण जी से मिलना अच्छा लगा। बहुत ख़ुशी हुई। उन्होंने मुझे फोन करके बुलाया खानपुर, जहाँ वह अपने बेटे के यहाँ ठहरे हुए हैं। उन्हें मेरा नंबर भोजपुरी सिटी के सम्पादक Akhilesh Kumar ने दिया था। घंटों उनसे बाते हुईं। पटना प्रवास की बहुत सारी बातें। आचार्य पाण्डेय कपिल, कविवर जगन्नाथ, भगवती प्रसाद द्विवेदी, नागेन्द्र प्रसाद सिंह, कृष्णा नन्द कृष्ण, डा० शम्भुशरण जी ....अजीत गांगुली , तरुण दा , अनिल मुखर्जी, कैलाश गौतम , उमाकांत वर्मा ... न जाने कितने प्रिय, वरिष्ठ और आदरणीय साहित्यकारों - नाटककारों की भूली विसरी यादें ताजी हो गयीं। फिर कुछ मैंने सुनाईं ..कुछ उन्होंने सुनाई। मेरी कविताओं पर उन्होंने खूब आशीर्वाद दिया। इतना तो वह पटना में भी नहीं बतियाये थे। एक-दो बार की तो मुलाक़ात हीं है। ..हाँ मेरे अफ्रिका चले जाने के बाद सन 2004 में जब मेरी पहली पुस्तक ''तस्वीर जिंदगी के'' प्रकशित हुई तो उसकी भूमिका कविवर सत्यनारायण जी ने लिखी। फिर भी कभी उनसे / फोन पर भी बात नहीं हुई थी। ..लेकिन आज यह जानकार और महसूस कर कि मेरी ग़ज़लें और मेरा ग़ज़लकार कविवर के ह्रदय में था और है ...मै भर गया। ..चलते-चलते कविवर ने मुझे आशीर्वाद के साथ अपनी एक पुस्तक '' सभाध्यक्ष हंस रहा है '' सस्नेह भेंट की 




मनोज भावुक एवं कवि सत्यनारायण
मनोज भावुक एवं कवि सत्यनारायण
 
मनोज भावुक एवं कवि सत्यनारायण
मनोज भावुक एवं कवि सत्यनारायण


मनोज भावुक एवं कवि सत्यनारायण
मनोज भावुक एवं कवि सत्यनारायण

भारतीय भाषा महोत्सव: समन्वय 2013 दिल्ली में मनोज भावुक

Manoj Bhawuk with Padmshree Sharda Sinha
Manoj Bhawuk with Padmshree Sharda Sinha
भारतीय भाषा महोत्सव: समन्वय 2013 दिल्ली में मनोज भावुक   Manoj Bhawuk in SamanvaY: IHC Indian Languages' Festival

मनोज भावुक, और    हरिराम द्विवेदी, 

भारतीय भाषा महोत्सव: समन्वय 2013 दिल्ली में मनोज भावुक   Manoj Bhawuk  in SamanvaY: IHC Indian Languages' Festival
मनोज भावुक और शिल्पा शुक्ला अभिनेत्री (बीए पास (2012)चक दे! इंडिया (2007)हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी (2003)भिन्डी बाज़ार इंक० (2011))

भारतीय भाषा महोत्सव: समन्वय 2013 दिल्ली में मनोज भावुक   Manoj Bhawuk  in SamanvaY: IHC Indian Languages' Festival
 मनोज भावुक, शिल्पा शुक्ला, अजय ब्रह्मात्‍मज और आलोक कुमार राव 

भारतीय भाषा महोत्सव: समन्वय 2013 दिल्ली में मनोज भावुक   Manoj Bhawuk  in SamanvaY: IHC Indian Languages' Festival

मनोज भावुक, चन्दन यादव और प्रकाश उदय 

भारतीय भाषा महोत्सव: समन्वय 2013 दिल्ली में मनोज भावुक   Manoj Bhawuk  in SamanvaY: IHC Indian Languages' Festival
मनोज भावुक, सरोज सुमन , सुचित्रा भागवत, पंडित हरिराम द्विवेदी, प्रकाश उदय , चन्दन यादव, अंकिता आनंद , एस के झा आदि 

भारतीय भाषा महोत्सव: समन्वय 2013 दिल्ली में मनोज भावुक   Manoj Bhawuk  in SamanvaY: IHC Indian Languages' Festival
मनोज भावुक, सरोज सुमन , सुचित्रा भागवत, पंडित हरिराम द्विवेदी, प्रकाश उदय , चन्दन यादव, अंकिता आनंद , एस के झा आदि 


भारतीय भाषा महोत्सव: समन्वय 2013 दिल्ली में मनोज भावुक   Manoj Bhawuk  in SamanvaY: IHC Indian Languages' Festival
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भारतीय भाषा महोत्सव: समन्वय 2013 दिल्ली में मनोज भावुक   Manoj Bhawuk  in SamanvaY: IHC Indian Languages' Festival
पंडित हरिराम द्विवेदी, अरुणेश नीरन, प्रकाश उदय और मनोज भावुक 

पंडित हरिराम द्विवेदी, अरुणेश नीरन, प्रकाश उदय और मनोज भावुक 


भारतीय भाषा महोत्सव: समन्वय 2013 दिल्ली में मनोज भावुक   Manoj Bhawuk  in SamanvaY: IHC Indian Languages' Festival
 मनोज भावुक , प्रकाश उदय और  चन्दन यादव 

Monday, October 14, 2013